जख़्म आज भी हरे है, तू आकर देख तो ज़रा,
तेरे जाने के बाद इनसे रिस रिस के लहू निकलता है.
दवा मर्ज़ की हो कोई तो जाकर कही से ढूंढ लूँ,
ज़हर-ए-बेवफाई कहा इतनी आसानी से निकलता है.
हमने पुछा जो इलाज़ इस दर्द-ए-मोह्बत का,
हमने पुछा जो इलाज़ इस दर्द-ए-मोह्बत का,
वो बोले महखाने मे हर मर्ज़ का इलाज मिलता है.
Gud work paaji
Awesome
Chaa gye guru ….Galbaad
Wah wah wah……beautiful poetry…..touching
Wah wah 👌💯